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एक बार रतन टाटा

एक बार रतन टाटा बिज़निस के सिलसिले में जर्मन गए हुए थे ।
अपने एक मित्र के साथ रतन टाटा हेमबर्ग नाम के एक शहर में रुके हुए थे ।
शाम हुई तो खाना खाने के लिए एक बड़े अच्छे से होटल में दोनों लोग खाना खाने गए ।
दिन भर काम की व्यस्तता के कारण भूख काफी जोरों से लगी थी, वेटर मीनू लेकर आया तो रतन टाटा और उनके मित्र ने काफी सारे व्यंजन का ऑर्डर कर दिया ।
कुछ देर बाद खाना लाया गया दोनों ने बहुत मजे से खाया और जितना खाया गया उतना खाया और बाकि पेट भर जाने के बाद छोड़ दिया ।
खाने के बाद रतन टाटा ने बिल चुकाया और जाने लगे । पास ही बैठीं कुछ महिलाएं उन दोनों की तरफ घृणा द्रष्टि से देख रहीं थी और उनको इंगलिश में कुछ अपशब्द भी कहे जैसे की वो उनके खाना ख़राब करने की वजह से नाराज हों ।
उनके मित्र ने महिलाओं को सफाई दी कि वो खाने का बिल चूका चुके हैं । ये सुनकर वो महिलाएं और भड़क गयीं और और एक नंबर पे फ़ोन करके उनकी शिकायत की ।
कुछ ही देर में वहाँ किसी शोशल सोसाइटी के लोग आ गए और कहा कि आपने खाने के पैसे चूका दिए लेकिन ये खाना देश की संपत्ति है आपकी नहीं,
इसे ख़राब करने का आपको कोई हक़ नहीं है , जितना खा सको उतना ही
आर्डर करें और इस तरह रतन टाटा पर 200 $ का जुर्माना लगा ।
घर वापस लौटते वक्त कुछ बातें रतन टाटा के मन में चल रही थीं कि जिस देश के नागरिक इतने ज्यादा सभ्य और ऊँची सोच वाले हों वो देश तो विकसित होना ही होना है ।
ऐसे देश को में सेल्यूट करता हूँ ।
मित्रों आज भी दुनिया में लाखों लोग भूखे सोते हैं, कुछ लोगों के पास एक वक्त भी खाने को खाना नहीं है । मेरी अपने देश के नागरिकों से यही उम्मीद है
कि खाना कभी बर्बाद ना करें और देश के विकास में अपना योगदान दें ।

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