हमारे भारत में परम्पराओं और संस्कृति का देश है। यहां के हर हिस्से से कोई ना कोई अनोखी परम्परा जुडी हुई है। हमने इस लेख में भारत की 7 ऎसी ही अनोखी अचरज भरी परम्पराओं और रीती रिवाजों का संकलन किया है। भारत में कई धर्मों के लोग मिलजुल के रहते हैं और यहाँ आपसी भाईचारा बहुत ही गजब का है। और फिर जानिए पुरुषों में कैंसर के लक्षण
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1. मनोकामना पूर्ति के लिये जमीन पर लेटे लोगों के ऊपर छोड़ दी जाती हैं गायें
मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले के कुछ गावों में एक अजीब सी परम्परा का पालन सदियो से किया जा रहा है। इसमें लोग जमीन पर लेट जाते हैं और उनके ऊपर से दौड़ती हुए गाये गुजारी जाती हैं। इस परंपरा का पालन दिवाली के अगले दिन किया जाता है जो कि एकादशी का पर्व कहलाता है। इस दिन उज्जैन जिले के भिडवाड और आस पास के गाँव के लोग पहले अपनी गायों को रंगों और मेहंदी से अलग-अलग पैटर्न से सजाते हैं। उसके बाद लोग अपने गले में माला डालकर रास्ते में लेट जाते है और अंत में दौड़ती हुए गायें उन पर से गुजर जाती हैं।
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2. शाटन देवी मंदिर, छत्तीसगढ़ – यहाँ बच्चो के अच्छे स्वास्थ्य लिए देवी को चढ़ाते है लौकी
छत्तीसगढ़ के रतनपुर में स्थित शाटन देवी मंदिर(बच्चों का मंदिर) से एक अनोखी परंपरा जुड़ी है ! मंदिरों में आमतौर पर फूल, प्रसाद, नारियल आदि भगवान को चढ़ाने का विधान है लेकिन शाटन देवी मंदिर में देवी को लौकी और तेंदू की लकड़ियां चढ़ाई जाती हैं ! इस मंदिर को बच्चों का मंदिर भी कहते हैं ! श्रद्धालु यहां अपने बच्चों की तंदुरुस्ती के लिए प्रार्थना करते हैं और माता को लौकी और तेंदू की लकड़ी अर्पण करते हैं। इस मंदिर में यह परंपरा कैसे शुरू हुई यह कोई नहीं जानता लेकिन ऐसी मान्यता है कि जो भी यहां लौकी और तेंदू की लकड़ी चढ़ाता है उनकी मनोकामना पूरी होती है !पढ़े : क्या है हार्ट अटैक.....! हार्ट अटैक से बचने के कुछ उपाय.....!
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3. पति कि सलामती के लिए जीती है विधवा का जीवन
भारत में आज भी कुछ ऐसी परम्पराय जीवित है जो हमे अचरज में डालती है ! पति कि सलामती के लिए पत्नी का विधवा का जीवन जीना ! यह परम्परा गछवाह समुदाय से जुडी है ! यह समुदाय पूर्वी उत्तरप्रदेश के गोरखपुर देवरिया और इससे सटे बिहार के कुछ इलाकों में रहता है ! ये समुदाय ताड़ी के पेशे से जुड़ा है ! इस समुदाय के लोग ताड़ के पेड़ों से ताड़ी निकालने का काम करते है ! ताड़ के पेड़ 50 फीट से ज्यादा ऊंचे होते है तथा एकदम सपाट होते है ! इन पेड़ों पर चढ़ कर ताड़ी निकालना बहुत ही जोखिम का काम होता है ! ताड़ी निकलने का काम चैत मास से सावन मास तक, चार महीने किया जाता है ! गछवाह महिलाये (जिन्हे कि तरकुलारिष्ट भी कहा जाता है ) इन चार महीनो में ना तो मांग में सिन्दूर भरती है और ना ही कोई श्रृंगार करती है ! वे अपने सुहाग कि सभी निशानिया तरकुलहा देवी के पास रेहन रख कर अपने पति कि सलामती कि दुआ मांगती है !
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4.भूतों का साया और अशुभ ग्रहों का प्रभाव हटाने के नाम पर करवाते हैं बच्चियों कि कुत्तों से शादी
हमारे देश में झारखण्ड राज्य के कई इलाकों में परंपरा के नाम पर ऐसी शादियां सदियों से कराई जा रही है ! इस परम्परा में भूतों का साया और अशुभ ग्रहों का प्रभाव हटाने के नाम पर बच्चियों की शादी कुत्तों से करवाई जाती है ! हालाकि ये शादी सांकेतिक होती हैं पर होती हैं असली हिन्दू तरीके और रीती रिवाज़ से ! लोगों को शादी में आने का निमंत्रण दिया जाता है ! पंडित ! हलवाई सब बुक किये जाते है। बाकायदा मंडप तैयार होता है और पुरे मन्त्र विधान से शादी सम्पन कराई जाती है ! इस शादी में एक असली शादी जितना ही खर्चा बैठता है और उससे भी बड़ी बात कि समाज एवं रिश्तेदार भी इसमें बढ़ चढ़ के हिस्सा लेते है !
5. नागपंचमी पर गुड़िया पीटने की अनोखी परम्परा
उत्तरप्रदेश नागपंचमी को महिलाएँ घर के पुराने कपडों से गुड़िया बनाकर चौराहे पर डालती हैं और बच्चे उन्हें कोड़ो और डंडों से पीटकर खुश होते हैं ! इस परम्परा की शुरूआत के बारे में एक कथा प्रचलित है ! तक्षक नाग के काटने से राजा परीक्षित की मौत हो गई थी ! समय बीतने पर तक्षक की चौथी पीढ़ी की कन्या राजा परीक्षित की चौथी पीढ़ी में ब्याही गई। उस कन्या ने ससुराल में एक महिला को यह रहस्य बताकर उससे इस बारे में किसी को भी नहीं बताने के लिए कहा लेकिन उस महिला ने दूसरी महिला को यह बात बता दी और उसने भी उससे यह राज किसी से नहीं बताने के लिए कहा। लेकिन धीरे-धीरे यह बात पूरे नगर में फैल गई ! तक्षक के तत्कालीन राजा ने इस रहस्य को उजागर करने पर नगर की सभी लड़कियों को चौराहे पर इकट्ठा करके कोड़ों से पिटवा कर मरवा दिया ! वह इस बात से क्रुद्ध हो गया था कि औरतों के पेट में कोई बात नहीं पचती है ! तभी से नागपंचमी पर गुड़िया को पीटने की परम्परा है !
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