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मौत का मज़ाक बना कर अस्पताल में चला तंत्र मंत्र...! जादू टोना.....!

हमारे विज्ञान आज भी आत्मा के बारे में पक्के तौर पर कुछ कहने की स्थिति में नहीं है, परन्तु समाज में आज भी अंधविश्वास और रूढ़ीवादिता में आत्माओ का वजूद बहुत ही गहरे से पैठ किए हुए है। जी हाँ इसका नमूना कही और नहीं बल्कि सोमवार को जिले के सबसे बड़े महात्मा गांधी चिकित्सालय में देखने को मिला। बरसों पूर्व अस्पताल में दमतोड़ चुके एक बच्चे की आत्मा ले जाने के लिए ये उपक्रम हुआ। बच्चे का परिवार और ग्रामीण एकत्र हुए, ढोल, बाजे , पटाखे , एवं तंत्र-मंत्र और पूजा अर्चना हुआ। यह सब करके आत्मा को ले जाया जा रहा था। किसी ने ना रुका और ना किसी ने टोंका। अस्पताल प्रशासन भी मुह देखता रहा !

पूरे तामझाम के साथ आए
भटकती आत्मा के अंधविश्वास और दुनिया को अनदेखा करते चलते बच्चे का परिवार पूरे तामझाम के साथ अस्पताल पहुंचा। ढोल-ढमाकों , बाजे के साथ पहुंचे लोगों को देखकर चिकित्सालय में भर्ती मरीज वह अन्य एक बार सकते में आ गए। अस्पताल में जिस जगह बच्चे की मौत हुई थी , उसी जगह तन्त्र-मंत्र शुरू हो गया उसके साथ पूजा अर्चना हुई और आत्मा का ले जाने का तैयारी चली। देखते ही देखते वह लोगो की भीड़ उमड़ पड़ी।



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मरीज वह अन्य लोगो को हुई परेशानी
इस प्रक्रिया के दौरान Hospital की पुलिस चौकी के पुलिस वाले और नर्सिंग स्टॉफ भी मौजूद था, लेकिन किसी की भी उन्हें रोकने की हिम्मत नहीं की। पूरा एक घंटे से भी ज़्यादा समय तक ढोल की गूंज से ICU ward वह अन्य वार्डों के मरीज परेशान हुए। आखिर कोई नहीं था इसे देखने वाला...!


परिजन का मन्ना है की बच्चे की आत्मा भटक रही है
परिजनों के मुताबिक बच्चे की आत्मा भटक रही है। उनके परिवार के एक सदस्य को बार-बार बच्चे की आत्मा का भाव आ रहा था। वह उस बच्चे की शांति के लिए अस्पताल में उसकी आत्मा लेने आए हैं।

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बच्चे की मौत आज से 12 साल पहले हुई थी
12 वर्षीय बालक शैलेश पुत्र कांतिलाल की चिकित्सालय के नेत्र ओपीडी में वर्ष 2003 में आंख के ऑपरेशन के दौरान दुखत मौत हो गई थी। डूंगरपुर जिले के ठाकरड़ा गांव में हुआ ये हादसा...!


रोकने गए वहा के डॉ
मुझे सूचना मिली तो मैं उन्हें ही तुरंत रोकने गया, मगर तब तक वे लोग निकल चुके थे। वहां मौजूद कार्मिकों को रोकने का प्रयास करना चाहिए था। भविष्य में ऐसी घटना न हो इसकी इसके लिए हम सखी करेंगे ये कहना है वहा के डा. दीपक नेमा, पीएमआ, एमजी अस्पताल, बांसवाड़ा

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